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मन की बातें ……..

srijan
srijan
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रे मन तू तो अति कुशल चितेरा है ।
मन सुमरनी सी माला है ,
मन चलता है, रुकता है ,
यही तो तेरी सरलता है ।
मन में रंगों की बूंदे है ,
कुछ मिलती है ,थोड़ी घुलती है ,
लहराती है बल खाती है ,
अंगड़ाई लेती,गड्ड मड हो जाती है ।
मन का रूप निपट निराला है
चाहो जैसा वैसा ही ढल जाता है ,
कुछ योग है ,थोड़ा संयोग है ,
तितलियों के कामदानी से
पंख लगा इधर उधर उड़ जाता है ।
मन के भीतर कई हिस्से है ,
कुछ बनते है ,थोड़े बिखरते है ,
कहीं द्रश्य है, कही अद्रश्य ।
मन की सह्स्त्रो आंखे है ,
कहीं तरलता है कही शुष्कता ,
कही सफलता है तो कही विफलता ।
मन पर मौन का पहरा है
कहीं प्रकाश सा दूधिया सवेरा है ,
कही निपट अंधियार घनेरा है
रे मन तो तो अति कुशल चितेरा है ।

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