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साधु,संत-जनों तपस्वियों ने गंगा जब भी तुम्हे पुकारा,
मोक्षदायिनी बन गंगा मैया तुमने धरा पर स्वयं को तुरंत उतारा.
भागीरथ के पुरखों को तारने आई बन कर निर्मल धारा,
पिता भोले शंकर की जटा का मिला तुम्हे सुरक्षित सहारा.
विशाल ह्रदय हिमालय की त्याग गोद,चली इठलाती हो,
पारदर्शी कंचन काया को रजत रश्मि सी झलकाती हो.
बाँध झाँझरें शीतल निर्मल धारा ने अपना कदम बढाया ,
हम मानवों का स्वार्थ देख तुम्हारा मन दुखी हो घबराया.
तुम तो आयीं थीं मानव को जीवन देने बन कर जीवनदायिनी ,
करना था आदर, दुलार और सत्कार हमें, बना तुम्हे पाहुनी .
दर्शन कर गर हम पाप धोते मन के सारे,
जड़ जाते तुम्हारी काया पर अनगिन झिलमिल तारे.
डाल मैला ,कचरा ,गंदगी कर दिया आँचल तुम्हारा काला,
क्षमाशील माँ गंगा को बना दिया दुर्गंधित संकरा नाला.
कारखानों का अपशिष्ट,अस्थियाँ और डाला नश्वर शरीर ,
सुंदर पावन कंचन सी काया को कैसी दी है पीर .
साधु संत-जनों ने तुमको स्वच्छ बनाने का उठाया है बीड़ा ,
हम भी संकल्प धरें ,सहयोग करें समझें तुम्हरे मन की पीड़ा.
झूठे आडम्बरों की परिपाटी से बाहर आ सत्य आचरण करेंगे,
छोड़ गए जो प्रिय हमारे उनकी, चुटकी भर भस्म ही विसर्जित करेंगे.
अन्नदायिनी मोक्षदायिनी माँ गंगा हम और पाप अब ना करेंगे,
मन ही मन भक्ति के दीप जला, श्रध्धा के सुमन चढ़ा तुम्हरे कष्ट हरेंगे.
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