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सब से प्यारे मेरे पापा
मन सुमन खिला , खिला सा रहता ,
रहता प्रमुदित मन उजला ,उजला सा !
बालपन भी सूर्य की प्रथम रश्मि सा दमक उठा ,
जब पितृ स्नेह का स्नेहिल वरद हस्त बढ़ा था !
मन ……………………………………………………..
जीवन यूँ आसाँ नहीं था मेरा जीना ,
आपकी सीख तले हिम्मत ने साथ नहीं छीना !
राहें मेरी कंटक धूल भरी थी ,किन्तु आपके,
सिद्ध अभ्यस्त हाँथों के लिए नई भी नहीं थी !
मन ……………………………………………………
मेरी कठिन कठिनतम राहों के असंख्य कंटक बीने,
राहों की धूले झाड़ीं ,पोंछीं शीशे सी दमकायीं, मन चाहे
आपके श्रांत क्लांत हाथों पे आदर स्नेह का मरहम लगाऊ,
अश्रु के दो बूंद समर्पित कर शीतलता पह्चाऊ !
मन ……………………………………………………………………….
आपसा विराट ,उदार , क्षमाशील सा कहाँ पाऊँगी ?
समस्त आदर समर्पित कर क्या कुछ दे पाऊँगी ?
जानें अनजानें हमनें कितने कष्ट दर्द दिए हैं ,
हमें सुख देने के लिए आपने गरल ही गरल पिए हैं !
मन …………………………………………………………………………..
संसार भर में सबसे प्यारे मेरे पापा आप तो नीलकंठ हैं ,
स्वयं आपने पिया गरल , हमें दिया अमृत अविरल !
मन सुमन खिला खिला सा रहता ,
रहता प्रमुदित मन उजला उजला सा !
बालपन भी सूर्य की प्रथम रश्मि सा दमक उठा,
जब पितृ स्नेह का स्नेहिल वरद हस्त बढ़ा था !
रश्मि श्रीवास्तव ,
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